भारतीय उर्दू पत्रकारिता के 200 साल पूरे होने के अवसर पर एक परिचर्चा एवं सम्मान समारोह का आयोजन बज़्मे उर्दू के तत्वाधान में किया गया| मशहूर स्वतंत्रता सेनानी अल्लामा फजले हक़ खैराबादी की याद में आयोजित इस कार्यक्रम में “भारतीय उर्दू पत्रकारिता में सीतापुर के योगदान का महत्त्व विषय” पर वक्ताओं ने कार्यक्रम को संबोधित किया|
सीतापुर | अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के प्रो० सिराज अजमली ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि सीतापुर की उर्दू पत्रकारिता में अल्लामा फ़ज़ले हक़ खैराबादी का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने ने ही अंग्रेजों के खिलाफ फतवा जारी करके जनता में देशप्रेम की भावना जागृत करने का काम किया था। फजले हक खैराबादी की बेटी सईदुल निशां हिर्मां एक अच्छी शायरा थीं जिनके बेटे मुज़्तर खैराबादी बाद में देश के बड़े शायर बने। मुज़्तर खैराबादी के बेटे जां निसार अख्तर भी अपने ज़माने के क़ाबिल शायर थे जिनके बेटे जावेद अख़तर और उनके पोते फरहान अख्तर आज फिल्म इंडस्ट्री का बड़ा नाम हैं। जिन लोगों ने भी अल्लामा फजे हक खैराबादी पर काम किया है उनका भी सीतापुर और उसकी पत्रकारिता से एक रिश्ता जुड़ ही जाता है। बाहर वाले ये देखकर ईर्ष्या करते हैं कि सीतापुर के लोगों ने अपने काम से एक मिसाल पेश करके उर्दू पत्रकारिता को नयी ऊंचाइयों पर पहुँचाया है।
इंक़लाब के रेज़ीडेंट एडिटर जीलानी खान ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि सर्वप्रथम उर्दू सहाफत ने अंग्रेजों की आँखों में आँखें डालकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी और लोगों को एहसास दिलाया था कि जनता यदि चाहे तो अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंक सकती है। ये हौसला उर्दू पत्रकारिता में ही था जिसकी कीमत बाद में उर्दू पत्रकारिता ने चुकाई। शुरुआत से ही उर्दू अख़बार जनता के हित में सरकार की पालिसियों पर खुलकर लिखते रहे हैं। कुछ अख़बार ऐसे भी थे जो जनता के आन्दोलनों को प्रमुखता देते थे।
वरिष्ठ कहानीकार एवं रेडियो ब्रॉडकास्टर प्रतुल जोशी ने उर्दू पत्रकारिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उर्दू पत्रकारिता में उच्चारण का बहुत अहम् किरदार है और उच्चारण सुधारने में रेडियो से अच्छा कोई माध्यम शायद ही रहा हो। अख़बार पढ़कर सिर्फ भाषा का ज्ञान होता है लेकिन खबर पढ़कर और रेडियो सुनकर उसके उच्चारण की सही तरीका आता है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं शायर रिजवान फ़ारूकी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि उर्दू सिर्फ एक जुबान नहीं पूरी तहजीब का नाम है। उर्दू में हर शब्द को बगैर किसी भेदभाव और झिझक के अपनाया गया है। उर्दू भाषा ने सभी लोगों को आपस में जोड़ने और भाईचारे का सन्देश दिया है और ऐसा इसलिए हुआ कि उर्दू पत्रकारिता से समाज का हर वर्ग जुड़ा रहा।
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने कहा कि किसी भाषा का अनुवाद करना एक नामुमकिन काम है। इतालवी भाषा में एक कहावत है कि जो अनुवाद करता है वो ग़द्दार होता है। ऐसा इसलिए कि हर एक शब्द अपने आप में पूरी कायनात समेटे हुए होता है। अक्सर जब उस शब्द का अनुवाद किया जाता है तो वो कायनात कहीं खो जाती है।
वरिष्ठ पत्रकार मस्त हफीज रहमानी ने उर्दू पत्रकारिता में सीतापुर के योगदान पर बोलते हुए बताया कि जबसे सीतापुर बना तब से ये शहर उर्दू भाषा का प्रमुख केंद्र रहा है। यहाँ के राजा टोडरमल और मख्दूम शाह ने अपनी कविताएँ उर्दू में ही लिखी हैं। यहाँ के मौलवी शेख़ इकराम अली ने ही सर्वप्रथम उर्दू शब्द का ज़िक्र किया। उनसे पहले किसी ने इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। उन्हीं के नाम से सीतापुर के शेख़ सराएं मोहल्ला आबाद हुआ है। कलकत्ता के फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना में भी सीतापुर के लोगों का प्रमुख योगदान रहा है जिसमें मौलवी शेख़ इकराम अली के अलावा अल्लामा तुराब अली खैराबादी और खलीलुद्दीन अश्क खैराबादी का नाम प्रमुख है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार केजी त्रिवेदी और संचालन खुश्तर रहमान खान ने किया। कार्य्रकम में उर्दू और हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने वाले 40 पत्रकारों को अवार्ड प्रदान किया गया और शाल्यार्पण कर उनका सम्मान किया गया|
इस अवसर पर डॉ. सुहेल वहीद, शोभित टंडन, एम सलाहुद्दीन, ज्ञान प्रकश सिंह प्रतीक, ऋचा सिंह, खबीर नदवी, आर के यादव, सागर गुप्ता, राजेश मिश्र, हरिराम अरोरा, संतोष मिश्र, शहाब वहीद, फ़राज़ हमीद, शोएब वहीद, मो० रेहान, मो० कैफ सहित कई लोग उपस्थित रहे|
Commenti