बढ़ती जनसँख्या विश्व पर एक बोज की तरह है।जनसँख्या नियंत्रण हाल में काफी चर्चा का विषय बन गया है। सरकर का कहना है की इसको कंट्रोल करने के लिए जनसँख्या नियंत्रण कानून की सख्त ज़रुरत है।वहीँ ओप्पोसिशन की पार्टियां इस कानून का पुरजोर विरोध कर रहीं हैं. इस कानून को वोट और मज़हब के चश्मे से न देकते हुए एकमत हो कर निर्णय जल्द ही लेना होगा।
देश की बढ़ती जनसंख्या चिंताजनक है पर जब कभी जनसंख्या नियंत्रण की बात उठती है तो एक समुदाय विशेष के विरोध के स्वर उठने लगते है।अभी हालिया दशहरे पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जनसंख्या नियंत्रण की बात कही थी, तो फिर इसके विरोध में स्वर उठे। किंतु विरोध करने वालों को यह समझना होगा कि जनसंख्या नियंत्रण पर भविष्य में जो भी कानून बनेगा वह हेर व्यक्ति पर समान रूप से लागू होगा।
जनसंख्या नियंत्रण किसी समुदाय अथवा मजहब के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह देश वह सर्व समाज के हित में है। यूएन के आंकड़ों पर गौर करें तो आज देश की आबादी लगभग 141 करोड़ है। हम जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे स्थान पर हैं पर विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश चीन हमसे थोड़ा ही आगे लगभग 142 करोड पर ही है ।
विरोध करने वाले इसे वोट के चश्मे से देख रहे हैं किंतु उन्हें यह भी सोचना होगा कि बढ़ती आबादी देश के लिए घातक होती जा रही ह।बढ़ती आबादी के कारण ही बेरोजगारी बढ़ रही है, बढ़ती आबादी के कारण ही शिक्षा व्यवस्था व चिकित्सा सुविधा चरमरा रहे है, कृषि क्षेत्र घटता जा रहा है, प्रशासनिक उदासीनता के कारण वन क्षेत्र भी सिकुड़ रहा ह।जंगलों के निकट अतिक्रमण के चलते ही जानवर भी असुरक्षित महसूस करने लगे हैं।आए दिन आबादी में शेर तेंदुआ आदि आने की खबरें सुनाई पड़ने लगती हैं।
आने वाले वर्षों में पेयजल की समस्या भी विकराल रूप धारण करने वाली है, भूगर्भ जल का दोहन भी चिंता बढ़ा रहा ह। जब आबादी के कारण उगते कंक्रीट के जंगल कृषि भूमि निगलने लगेंगे तो हम एक बार फिर आश्रय के लिए दूसरे देशों का मुंह ताकने पर विवश हो जायेंगे।
सब ईश्वर की मर्जी कहकर जनसंख्या नियंत्रण का विरोध करने वाले यह कब सोचेंगे कि जीवन में जीवित रहना ही जरूरी नहीं ,पेट तो जानवर भी भरते हैं ,पर क्या जानवरों और हम में कोई भेद नहीं है।आरएसएस प्रमुख की जनसंख्या नियंत्रण वाली सोच को वोट के चश्मे से ना देखें देश के हित में देखें और सोचे कैसे शिक्षित समाज बनाया जा सकता है? कैसे ज्यादा से ज्यादा निरोगी समाज बनाया जा सकता है? और इन सब प्रश्नों का एक ही उत्तर है जनसंख्या नियंत्रण।
जनसंख्या नियंत्रण केवल सरकार के बस की बात नहीं है।घटता कृषि क्षेत्र, पेयजल की होती जा रही कमी भयावह है। यह हमें डरा रही है ,इस विषय पर बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, राजनीतिज्ञों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर, धर्म मजहब के खानों से बाहर निकल कर सोचना होगा ,कि क्या करें जो इस भयावह स्थिति को ठीक किया जा सके, और क्या सरकार इसमें सुधार करें।जब सब मिलकर गंभीर चिंतन करेंगे तो ही इस विकराल समस्या का हल निकलेगा।इस विषय में देरी ठीक नहीं।
वीरेंद्र सक्सेना
न्यूज़ एडिटर
एफ्रोएशियाई सन्देश
Comments