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Hindi Poem: द्यत-क्रीड़ा के चक्र में, हुआ उदय महाभारत का शोर - अर्चित मोहन

भारतवर्ष सदैव ही कला व कलाकारों की जन्मभूमि रहा ह।संगीत, नृत्य, काव्य न जाने कितनी अन्य कलाओं में निपुण कलाकारों को इस देश ने प्यार और सम्मान दिया ह। अफ्रोएशियाई संदेश का हुनरबाज सेक्शन उन छुपे हुए कलाकारों को समर्पित है जो अपनी कला को विश्व के साथ साझा करना चाहते हैं |




आज के हुनरबज हैं लखीमपुर खीरी के निवासी 28 वर्षीय अर्चित मोहन, अर्चित पेशे से इंजीनियर हैं और बचपन से ही हिंदी काव्य रचना में दिलचस्बी रखते है। अर्चित का गुस्ताख़ शब्द नाम से इंस्टाग्राम पेज है जिसपर वे अपनी मार्मिक रचनाएँ पोस्ट करते है। इंस्टाग्राम के अलावा इनका YourQuote हैंडल भी है. अर्चित द्वारा रचित एक सुन्दर रचना है महाभारत सारांश.





महाभारत सारांश

भरत वर्ण के वंशज, शांतनु के हुए पुत्र महान।

भीष्म-विचित्र-चित्रांगद, एक से बढ़कर एक ये नाम।।


ब्रह्मचर्य का जीवन, राज-पाट किया परित्याग।

गंगा पुत्र की सौगंध, नहीं लिया इक अंगुल भी भाग।।


दायित्व स्वामित्व बोध का, विचित्र-चित्रांग को मिला समान।

पद एक वारिस थे दो, पर पांडु को मिला राज सम्मान।।


अग्रसर धृत मिला राज भी, और मिला नित ध्यान-काम।

कुँवर श्रेष्ठ की खोज में, कृष्ण फिर आए पृथ्वी धाम।।


गाँधारी के हुए सैकड़ों, कौन्तेय भी थे शूर पाँच।

राजनीति के भरम, आलय लाख भी न ला पाया आँच।।


फिर राज पाठ की नई दौड़ में, हुआ एक षड़यंत्र घोर।

द्यत-क्रीड़ा के चक्र में, हुआ उदय महाभारत का शोर।।


अंततः काल बन गया ग्रास, हाथ पाँडव हुआ राज अधीन।

गर क्षमा संग होती सुलह, नहीं होता कुरु कुल मृत्यु में लीन!!


-अर्चित मोहन




(अपने हुनर को हमारे साथ साझा कीजिये हमारे ईमेल afroasiaisandesh@gmail.com पर )

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